हिंदी विश्वविद्यालय के कार्यवाहक कुलपति प्रो. के. के. सिंह उड़ा रहे संविधान का मजाक- मंत्रालय मौन क्यों ?
यहां पर एक बात और बार-बार जो सबका ध्यान खींच रही है चुकि प्रोफेसर आनंद पाटील जिन्हें यह कार्यवाहक कुलसचिव का कार्य दायित्व दिया गया है वह दो बार इससे पहले भी इस्तीफा दे चुके हैं मतलब कि हिंदी विश्वविद्यालय में कार्यवाहक कुलसचिव के पद से मजाक किया जा रहा है।
मई माह से अब तक प्रो. के. के. सिंह के कार्य और उनके द्वारा लिए गए निर्णयों पर नजर डालें तो यही समझ में आता है कि प्रो. के. के. सिंह द्वारा विश्वविद्यालय को मजाक बनाकर चलाया जा रहा है।
वर्धा/ महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय में समस्याएं खत्म होने का नाम ही नहीं लेती हैं। मई माह 2024 में हिंदी विश्वविद्यालय में प्रोफेसर मैत्री के जाने के बाद हिंदी तुलनात्मक साहित्य विभाग के प्रो. के. के. सिंह को सीनियर होने के नाते हिंदी विश्वविद्यालय के कार्यवाहक कुलपति का दायित्व सरकार द्वारा दिया गया, लेकिन मई माह से अब तक प्रो. के. के. सिंह के कार्य और उनके द्वारा लिए गए निर्णयों पर नजर डालें तो यही समझ में आता है कि प्रो. के. के. सिंह द्वारा विश्वविद्यालय को मजाक बनाकर चलाया जा रहा है। जिस विश्वविद्यालय के संचालन में सरकार द्वारा करोड़ों रुपए प्रति महान खर्च किया जा रहा है उस विश्वविद्यालय के कार्यवाहक कुलपति प्रो. के. के. सिंह अपने गलत निर्णयों के कारण विश्वविद्यालय गर्त में जा रहा है। इससे ये नज़र आता है कि कार्यवाहक कुलपति प्रो. के. के. सिंह के अंदर सही निर्णय लेने की क्षमता का अभाव है।
इस प्रकार वह विश्वविद्यालय को मजाक बनाए हुए हैं या हो सकता है इसके पीछे अन्य कारण भी हो सकते हैं सोंचने वाली बात है कि एक केंद्रीय विश्वविद्यालय में तमाम सीनियर प्रोफेसर और अधिकारियों के होने के बावजूद एक नए नियुक्त हुए ऐसे व्यक्ति को कार्यवाहक कुलसचिव जैसे महत्वपूर्ण दायित्व की जिम्मेदारी दे दी जाती है जिसे अभी विश्वविद्यालय में स्थाई भी नहीं किया गया है। जिस प्रोफेसर पर मंत्रालय के द्वारा जांच के आदेश दिए गए हो ऐसे व्यक्ति को यह महत्वपूर्ण जिम्मेदारी देना किसी समझदार कुलपति का काम तो नहीं हो सकता है। यहां पर एक बात और बार-बार जो सबका ध्यान खींच रही है चुकि प्रोफेसर आनंद पाटील जिन्हें यह कार्यवाहक कुलसचिव का कार्य दायित्व दिया गया है वह दो बार इससे पहले भी इस्तीफा दे चुके हैं मतलब कि हिंदी विश्वविद्यालय में कार्यवाहक कुलसचिव के पद से मजाक किया जा रहा है।
एक केंद्रीय विश्वविद्यालय में ऐसे क्या कारण है ? कि कार्यवाहक कुलपति प्रोफेसर के के सिंह उनके इस्तीफे को स्वीकार नहीं कर पा रहे हैं। जबकि विश्वविद्यालय में आनंद पाटील की नियुक्ति अभी स्थाई भी नहीं हो पाई हैं। विश्वविद्यालय में आनंद पाटील की नियुक्ति जांच के घेरे में है ऐसी स्थितियों के बाद भी प्रोफेसर के के सिंह उन्हें कार्यवाहक कुलसचिव के दायित्व पर रखे हुए हैं यह सोचने वाली बात है। कार्यवाहक कुलपति क्या सोच रहे हैं, इसके पीछे उनका क्या एजेंडा होगा और इन सारी स्थितियों को देखते हुए हमारी सरकार खामोश क्यों है ? जबकि हिंदी विश्वविद्यालय में संविधान को बदलने और निरंतर संविधान की धज्जियां उड़ाई जा रही हैं। कार्यवाहक कुलपति के द्वारा नियमों को तक पर रख कर कार्य किए जा रहे हैं।
कार्यवाहक कुलपति प्रो. के. के. सिंह गलत निर्णयों के कारण विश्वविद्यालय पूरे देश में शिक्षा के क्षेत्र में पिछड़ता जा रहा है । कार्यवाहक कुलपति प्रो. के. के. सिंह के द्वारा लगातार गलत निर्णय लिए जाने का प्रयास किए जाते हैं जिसे रोकने के लिए बार-बार मंत्रालय को हस्तक्षेप करना पड़ रहा हैl